अब प्रतिरूप डाउनलोड कर सकते हैं

अब जब गीत गतिरूप में (प्रतिरूप बटन दबाने पर) आपकी कविता का प्रतिरूप बने, तो आप उसे चित्र के जैसे डाउनलोड कर सकते हैं।

इसके लिए “🎨👇” बटन दबाएँ —

आपका फ़ोन पूछेगा कि चित्र कहाँ और किस नाम से डाउनलोड करना है। दीए हुए विकल्प को आप बदल सकते हैं अथवा उसी को स्वीकार सकते हैं।
हो सकता है कि आपके फ़ोन में डाउनलोड अलग प्रकार से काम करे।
कम्प्यूटर / लैपटॉप पर भी आप “🎨👇 ” दबाकर चित्र डाउनलोड कर सकते हैं।

डाउनलोड किए हुए चित्र का आप किसी भी प्रकार प्रयोग कर सकते हैं — शेयर कर सकते हैं, या कुछ और।

क्या आपको यह सुविधा किसी मतलब की लगी? बताइयेगा।

इस पोस्ट में उदाहरण स्वरूप, केदारनाथ अग्रवाल की कविता “बसंती हवा” की कुछ पंक्तियों का प्रयोग किया गया है।

सात घोड़ों पर सवार सपना

धर्मवीर भारती की एक मुक्त छंद कविता है जो मुझे बहुत पसन्द है। एक निहित लय का भी एहसास होता है। किन्तु लय की बात बाद में, पहले कविता का आनन्द लें —

क्योंकि

…… क्योंकि सपना है अभी भी –
इसलिए तलवार टूटे, अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशायें,
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध-धूमिल,
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
…… क्योंकि है सपना अभी भी!

तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा
जबकि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा,
कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा,
विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था
(एक युग के बाद अब तुमको कहां याद होगा)
किन्तु मुझको तो इसी के लिए जीना और लड़ना
है धधकती आग में तपना अभी भी
…… क्योंकि सपना है अभी भी!

तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर
यह तुम्ही हो जो
टूटती तलवार की झंकार में
या भीड़ की जयकार में
या मौत के सुनसान हाहाकार में
फिर गूंज जाती हो
और मुझको
ढाल छूटे, कवच टूटे हुए मुझको
फिर याद आता है कि
सब कुछ खो गया है – दिशाएँ, पहचान, कुंडल-कवच
लेकिन शेष हूँ मैं, युद्धरत् मैं, तुम्हारा मैं
तुम्हारा अपना अभी भी

इसलिए, तलवार टूटी, अश्व घायल,
कोहरे डूबी दिशाएँ,
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध-धूमिल
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
…… क्योंकि सपना है अभी भी!

~ धर्मवीर भारती

कैसी लगी कविता? अति-सशक्त है न? एक निहित लय का एहसास हुआ?

मैंने इसे गीत गतिरूप में डाल कर देखा तो पाया कि सात मात्राओं की लय पर बह रही है यह कविता। पता नहीं क्यों, पर कविता मेरे लिए और भी सुन्दर हो गई। देखिए इस चित्र में — लगभग हर पंक्ति 7 मात्राओं का कोई गुणज है (14, 21, 28 इत्यादि)। कुछ पंक्तियों को जोड़ने से उनकी संख्या 7 का गुणज बनती है। और यह सब उच्चारण में कोई फेर बदल के बिना। सच, लय कविता का अनिवार्य गुण है।

सृजन का यह शाश्वत संगीत

जिनकी शिक्षा के आधार पर गीत गतिरूप का निर्माण हुआ — वैज्ञानिक और कवि विनोद तिवारी का एक-मात्र काव्य संकलन “समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न” प्रकाशित हुआ है।

भौतिक विज्ञान के शोध कर्ता और काव्यालय के सम्पादक डॉ. विनोद तिवारी, कविता में विज्ञान और विज्ञान में कविता देखते हैं। बचपन से ही उन्होंने अपने अन्तर्मन को काव्य के माध्यम से अभिव्यक्त किया। 80 वर्ष की जीवन यात्रा के सभी सत्य और स्वप्न, यह पुस्तक उनकी अबतक की लगभग सभी कविताओं का संकलन है।

आप गीत गतिरूप का प्रयोग करते हैं, अर्थात आपको सुगठित अभिव्यक्ति की तलाश है। झरने जैसी बहती, सुकून देती यह कविताएँ आपको अवश्य पसन्द आएँगी। देखिए कुछ पंक्तियाँ, जिससे पुस्तक को शीर्षक मिला —

सृजन का यह शाश्वत संगीत,
तुम्हारे लिए तुम्हारा गीत।
समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न,
तुम्ही को मेरे मन के मीत।
तुम्हारा है सारा आकाश,
संजो कर रखना यह वरदान।
तुम्हारी मधुर मधुर मुस्कान।

साथ ही वाणी मुरारका की मौलिक चित्रकारी।

चलो चमन में बहारों के ख़्वाब देखेंगे।
किसी कली को कहीं बेनक़ाब देखेंगे।
चलो ज़मीन की तारीकियों से दूर चलें
फ़लक के पार चलें आफ़ताब देखेंगे।

पाठक क्या कह रहे हैं?
अमृत खरे: अभिभूत करतीं दिव्य-भव्य कवितायें। मैं मैं न रहा| स्वयं कवि विनोद तिवारी हो गया| परकाया प्रवेश हो गया| यह निश्चित ही कवि और कविता की “सिद्धि” को सिद्ध करता है|

पूनम दीक्षित : यह एक काव्य-यात्रा है। मोतियों पर टहलते हुए पर टहलते हुए मंज़िल की ओर।

पधारिये —
और जानकारीपुस्तक की झलकी । उपलब्ध : एमज़ॉन भारत अन्तराष्ट्रीयकाव्यालय

उफ्फ, यह दादी की दाढ़ी (और कविता का लय) कैसे सँवारें?

दादी की याद आने के कितने बहाने हैं…

दोस्तो, हल्की फुल्की हँसी के लिए, महिलाओं की इस अनकही संघर्ष पर, बबीता माँधणा ने सीधी सरल कविता लिखी —

इतिहास खुद को दोहराएगा

इक दिन मेरी दादी बोली,
तुम सब मिल मुझे चिढ़ाते हो
‘दाढ़ी की अम्मा’ कहते हो।
हम कहते ‘डैडी की अम्मा’
वे सुनती ‘दाढ़ी की अम्मा’!
वह मुस्काईं और फिर कहा —
इस ठुड्डी में बाल आ गए,
इसीलिए मुझे चिढ़ाते हो
‘दाढ़ी की अम्मा’ कहते हो?
इक दिन ऐसा भी आएगा,
इतिहास खुद दोहराएगा।
पार जवानी आएगी तू,
बाल उगेंगे ठुड्डी पर जब,
सब ‘दाढ़ी की अम्मा’ कह कर,
दादी की याद दिलाएँगे
यूँ इतिहास दोहराएँगे।

इक दिन मेरी दादी बोली।

~ बबीता माँधणा

अब बाल चाहे सर के हों या ठुड्डी के, बिखरें न हों तो बेहतर है, है न? वही बात कविता के साथ भी है। यह कविता जब पहली बार लिखी गई, इस प्रकार थी —

एक दिन मेरी दादी बोली,
तुम सब मिल मुझे चिढ़ाते हो
‘दाढ़ी की अम्मा’ बुलाते हो…
हम कहते थे ‘डैडी की अम्मा’,
वे सुनती थी ‘दाढ़ी की अम्मा’
उन्होंने मुस्कराकर फिर कहा-
मेरी ठुड्डी में बाल आ गए,
इसलिए मुझे चिढ़ाते हो…
‘दाढ़ी की अम्मा’ बुलाते हो|
एक दिन ऐसा आएगा,
इतिहास खुद को दोहराएगा…
जब तुम बड़े हो जाओगे
तुम्हारी ठुड्डी में बाल उगेंगे,
सब तुम्हे भी ‘दाढ़ी की अम्मा’ बुलाएँगे…
और मेरी याद दिलाएँगे|

बाल पर दो चार बार कंघी चलाने से वे संवर जाते हैं। कवि अपनी पंक्तियों को कैसे संवारे? कविता का सौन्दर्य कई पहलूओं से उभरता है। उसमें से एक पहलू है लय। यहाँ लय सुधारने के लिए हमने गीत गतिरूप की सहायता ली। गीत गतिरूप में इस कविता का पहले ड्राफ़्ट का यह चित्र बना —

यहाँ हर अंक उस पंक्ति की कुल मात्रा है
और चित्र में स्पष्ट है कि कौन सा अक्षर कितनी मात्राओं का है

पाठक का मन “एक” को “इक” स्वत: ही पढ़ लेता है क्योंकि लय में बहना इतनी आसान प्रक्रिया है। तो “एक” के ए पर क्लिक कर हमने उसे छोटा कर दिया (इसलिए बॉक्स पीला है) और पहली दो पंक्तियाँ 16 मात्रा में हैं। 16 मात्रा, सबसे आसान लय, अक्सर गीत संगीत कविता में पाई जाती है।

पर अन्य पंक्तियों का क्या? वे सोलह के आस पास हैं, पर कंघी चलानी होगी। देखिए हर पंक्ति को कैसे बदला गया। यह उदाहरण है कि कविता में गद्यात्मक अभिव्यक्ति को कैसे पद्यात्मक बनाया जा सकता है, अक्सर अनावश्यक शब्द हटाए जा सकते हैं।

‘दाढ़ी की अम्मा’ बुलाते हो [17 मात्रा]
‘दाढ़ी की अम्मा’ कहते हो [16 मात्रा]

“बुलाते” को “कहते” में बदल दिया। अ की एक मात्रा होती है, आ के दो मात्रा। उसे कहने में दुगुना समय लगता है।

एक स्पष्टिकरण — गीत गतिरूप दूसरे शब्द नहीं सुझाता है। क्या संशोधन उपयुक्त होगा, वह कवि पर ही निर्भर है। हाँ समानार्थक शब्द खोजने की सुविधा “शब्द सम्पदा” उपलब्ध है।

हम कहते थे ‘डैडी की अम्मा’ [18 मात्रा]
वे सुनती थी ‘दाढ़ी की अम्मा’ [18 मात्रा]

हम कहते ‘डैडी की अम्मा [16 मात्रा]
वे सुनती ‘दाढ़ी की अम्मा’ [16 मात्रा]
(अनावश्यक “थे”, “थी” हटा दिए)

उन्होंने मुस्कराकर फिर कहा [17 मात्रा]
वह मुस्काईं और फिर कहा [16 मात्रा]
(“उन्होंने मुस्कराकर” बहुत गद्यात्मक है)

मेरी ठुड्डी में बाल आ गए [18 मात्रा]
इस ठुड्डी में बाल आ गए [16 मात्रा]

लिए मुझे चिढ़ाते हो [15 मात्रा]
सीलिए मुझे चिढ़ाते हो [16 मात्रा]

क दिन ऐसा आएगा [15 मात्रा]
क दिन ऐसा भी आएगा [16 मात्रा]

इतिहास खुद को दोहराएगा [18 मात्रा]
इतिहास खुद दोहराएगा [16 मात्रा]

जब तुम बड़े हो जाओगे [15 मात्रा]
पार जवानी आएगी तू [16 मात्रा]

तुम्हारी ठुड्डी में बाल उगेंगे [19 मात्रा]
बाल उगेंगे ठुड्डी पर जब [16 मात्रा]

सब तुम्हे भी ‘दाढ़ी की अम्मा’ बुलाएँगे [24 मात्रा]
सब ‘दाढ़ी की अम्मा’ कह कर [16 मात्रा]

और मेरी याद दिलाएँगे [17 मात्रा]
दादी की याद दिलाएँगे [16 मात्रा]

पश्चिम बंगाल हावड़ा निवासी, हिन्दी अध्यापिका बबीता माँधणा को धन्यवाद, इस बिल्कुल अलग विषय की रचना के लिए, और इस संशोधन यात्रा को साझा करने की अनुमति के लिए।

गीत गतिरूप का एप्प

अब आप गीत गतिरूप को एप्प जैसे अपने फ़ोन पर सेव कर सकते हैं। इस लिंक से गीत गतिरूप पर आइये — https://geet-gatiroop.com/ । पधारने पर, नीचे “Add Geet Gatiroop to Home screen” दिखेगा। उसपर क्लिक करेंगे तो गीत गतिरूप का आयकॉन आपके फोन पर आजाएगा।

कम्प्यूटर पर एप्प लगाने का तरीका नीचे चित्रों के बाद दिया है।

फोन / टैबलेट पर —

“Add Geet Gatiroop to Home screen” पर क्लिक करें
यह आयकॉन आपके फोन पर आ जाएगा।

“Add Geet Gatiroop to Home screen” यदि नहीं दिख रहा है तो यह आप अपने ब्राउज़र मेन्यू को ऊपर दाहिने कोने पर तीन डॉट “⋮” द्वारा भी पा सकते हैं:

लैपटॉप-डेस्कटॉप पर

अपने कम्प्यूटर पर गीत गतिरूप का एप्प लगाने के लिए Chrome द्वारा गीत गतिरूप पर आकर ब्राउज़र के एडरेस बार पर “+” चिन्ह को दबाएँ और एप्प इन्सटॉल हो जाएगा।

यदि + नहीं दिख रहा है तो वही ऊपर दाहिने कोने पर तीन डॉट “⋮” से ब्राउज़र मेन्यू दबाएँ और नीचे चित्र के अनुसार Shortcut बनाएँ —

बड़े को छोटा किया तो दिख जाएगा

कविता में उच्चारण से ही लय निर्धारित होता है। देवनागरी लिपि के लघु (छोटे) दीर्घ (बड़े) स्वरों (अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ) का ठीक उच्चारण हो तो कम और ज्यादा समय लगता है और इसे ही मात्रा कहते हैं — समय की मात्रा।

इसके अनुसार तुलसिदास, दिनकर, बच्चन जैसे दिग्गज कवियों और पहले के गीतकारों की रचनाओं को गीत गतिरूप में डालें तो कविता लय के अनुसार सटीक ही दिखती है। किन्तु भाषा सदा रूप बदलता रहता है, तो कई बार उच्चारण लिपि के अनुकूल नहीं होता। हम भी रचना को छंद में ढालने का पूरा प्रयत्न नहीं करते हैं।

तो इन कुछ कारणों से शब्दों में बड़ी मात्रा का छोटा उच्चारण होता है —

  1. यदि रचना उर्दू से प्रेरित हो तो उर्दू में लघु दीर्घ स्वर (vowel) की ज्यादा छूट है
  2. रचना में अंग्रेजी के शब्द हों तो अंग्रेजी का कई जगह सही उच्चारण लघु होता है, जबकि करीबी अक्षर हिन्दी में दीर्घ ही लिखना होता है
  3. या हम बस कहीं कोई शब्द छोटा ही कह देना चाहते हैं, हालांकि उसका सही उच्चारण दीर्घ है

ऐसे में आप गीत गतिरूप में दीर्घ स्वर को लघु में बदल सकते हैं, और जब ऐसा करते हैं तो वह पीले रंग में बदल जाता है जिससे कि स्पष्ट नज़र आए कि रचना में किस जगह उच्चारण, लिपि के सही उच्चारण से भिन्न है।

देखिए, तीनों स्थिति के उदाहरण

1. उर्दू से प्रेरित रचना — दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

गीत गतिरूप में यह पहले तो ऐसे दिखता है

यह ग़ज़ल 26 मात्रा के लय पर है। पढ़ कर अपने उच्चारण पर ध्यान दें तो पायेंगे कि कई जगह बड़े स्वर का छोटा उच्चारण हो रहा है। उन अक्षर पर क्लिक करें तो वह सिकुड़ जाएगा और पीले रंग में बदल जाएगा। ऐसा करने पर प्रतिरूप यह बनता है —

पढ़ने के वक्त क्या आपको भी लगा कि यह पीले अक्षरों का लघु उच्चारण हो रहा है? लय में लिखने के लिए ध्वनि और उच्चारण पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।

2. अंग्रेजी शब्द का प्रयोग – वाणी मुरारका की छोटी सी रचना

भाषा हूँ मैं खाली पैकेट
मुझमें जो भरना है भर दो
हिन्दी या अंग्रेज़ी संस्कृत
कटु या फिर कुछ सोच प्रखर दो

कटु जो है वह मिट जाएगा
भाषा चाहे कोई भी हो
उन्नत जो है वही बचेगा
पैकेट जिस भी भाषा का हो

पहले गीत गतिरूप यह दिखाता है

यहाँ अंग्रेजी शब्द “पैकेट” का प्रयोग हुआ है, जिसके सही उच्चारण में “के” छोटा ही कहा जाता है। तो पैकेट के “के” पर क्लिक कर हम उसे छोटा करें तो प्रतिरूप यूँ बदलता है

3. बॉलिवुड का प्रसिद्ध गाना “तुम ही हो” – अरिजीत सिंह गायक, गीतकार मिथुन

हम तेरे बिन अब रह नहीं सकते
तेरे बिना क्या वजूद मेरा
तुझसे जुदा गर हो जाएँगे
तो खुद से भी हो जाएँगे जुदा

यहाँ गायन में कई बड़ी मात्राओं का छोटा उच्चारण किया गया है जिससे शब्द संगीत के लय में फिट हो जाए। तो आप गाना सुनें तो पायेंगे कि इन शब्दों के उच्चारण को यहाँ बदला गया है

कविता यदि अपने में लय और छंद के अनुकूल हो तो संगीत के बिना भी पाठक के दिल में उतरती है। हम यदि बार बार कविता को संशोधित कर छंद में लिखने का प्रयत्न करें तो अच्छा है, किन्तु यह कुछ उदाहरण थे कि यदि आप उच्चारण बदल रहे हैं तो गीत गतिरूप में उसे कैसे दर्शा सकते हैं।

खास मोबाइल के लिए

आप में से अधिकांश गीत गतिरूप का प्रयोग मोबाइल पर करते हैं, तो खास आपके लिए गीत गतिरूप में कुछ वृद्धि की गई है। संक्षिप्त विवरण पढ़, उपयोग कर बाताइयेगा कि इससे मोबाइल पर गीत गतिरूप और सुविधाजनक हुआ है कि नहीं —

पहले मोबाइल की सकड़ी स्क्रीन से प्रतिरूप अक्सर बाहर चला जाता था। पंक्ति कितने मात्राओं की है यह देखने दाहीने स्क्रोल करना पड़ता था।

अब, प्रतिरूप स्क्रीन की चौड़ाई के भीतर रहता है। जैसे कि बच्चन की इन पंक्तियों में —
कहते हैं तारे गाते हैं
सन्नाटा वसुधा पर छाया
नभ में हमने कान लगाया
फिर भी अगणित कंठों का यह
राग नहीं हम सुन पाते हैं!

कविता की पंक्तियाँ ज्यादा बहर की हो, और प्रतिरूप के डिब्बे बहुत छोटे नज़र आ रहे हों तो
* आप मोबाइल को घुमा सकते हैं जिससे प्रतिरूप नई चौड़ाई के अनुकूल चौड़ा हो जाए
या
* नई सुविधा “स्क्रीन फिट” पर क्लिक कर उसे ऑफ़ कर सकते हैं, जिससे कि प्रतिरूप अपने पूरे आकार में दिखे

जैसे धर्मवीर भारती की रचना कनुप्रिया की यह कुछ पंक्तियाँ
जिसकी शेषशय्या पर
तुम्हारे साथ युग-युगों तक क्रीड़ा की है
आज उस समुद्र को मैंने स्वप्न में देखा कनु

मोबाइल पर यह प्रतिरूप बहुत ही छोटा दिख रहा है

तो या तो हम मोबाइल को घुमा सकते हैं —

या नई सुविधा “स्क्रीन फिट” पर क्लिक कर उसे ऑफ़ कर सकते हैं

और पहले के जैसे दाहिनी ओर स्क्रोल कर सकते हैं

आशा है कि अब बार बार लगभग हर कविता के लिए आपको अब दाहिने स्क्रोल नहीं करना होगा और “स्क्रीन फ़िट” को तब ही ऑफ़ करना होगा जब कविता ऐसी मांग करे।

यह सुविधा किसी भी मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप, मॉनिटर पर काम आ सकती है, किन्तु खास मोबाइल के प्रयोगकर्ताओं को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। शब्द सम्पदा (समानार्थक शब्द) के स्क्रीन को भी और परिष्कृत किया गया है जिससे कि वह कविता और प्रतिरूप के बीच न आए।

बताइयेगा इन बदलाव से गीत गतिरूप आपके लिए और उपयोगी हुआ क्या?

आकार रंग में परिवर्तन — सरल, स्पष्ट प्रतिरूप

आप अपनी कविता में निहित छंद और लय का विश्लेष्ण और सरलता पूर्वक कर सकें इसके लिए गीत गतिरूप अब और सरल प्रतिरूप बनाता है। इससे मात्राओं का संयोजन और स्पष्ट उभरता है।

उदाहरण स्वरूप, विनोद तिवारी कृत “प्यार का नाता” की कुछ पंक्तियाँ देखें —

ज़िन्दगी के मोड़ पर यह
प्यार का नाता हमारा।
राह की वीरानियों को
मिल गया आखिर सहारा।

प्रतिरूप में अक्षरों को छिपा दें और पंक्तियाँ सटाएँ, तो संयोजन और भी स्पष्ट हो जाता है।

जब कुल मात्राएँ बहर / छन्द के अनुकूल हो पर लय के अनुकूल पंक्तिओं में संयोजन और सुधारना चाहें, तो यह प्रतिरूप से त्रुटि की जगह देखने में और सुविधा होती है।

ग़ज़ल में रदीफ़ काफ़िया अभी भी देख सकते हैं। उदाहरण स्वरूप, ग़ालिब के कुछ शेर

कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती

मौत का एक दिन मुऐयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती

कविता में स्वर, व्यंजन से ही तुक बनता है। स्वर, व्यंजन के संयोजन का अलंकार से गहरा रिश्ता है। इस सब से कविता के कुल सौन्दर्य पर प्रभाव पड़ता है। आगे हम कोशिश करेंगे कि स्वर, व्यंजन को पुन: प्रतिरूप में किसी तरह से दिखाएँ मगर फिर भी प्रतिरूप द्वारा विश्लेष्ण सरल ही रहे। इसके लिए कुछ शोध, अध्ययन, मनन की आवश्यकता होगी।

अभी तो आशा है कि इस बदलाव से आपके लिए अपनी कविता में निहित छंद और लय का विश्लेषण सरल होगा।

अब अन्य मुद्राओं में भी भुगतान सम्भव

अब आप गीत गतिरूप के सदस्यता प्लान अन्य मुद्राओं (currency) में भी खरीद सकते हैं। यदि आप भारत के बाहर रहते हैं तो आशा है इससे आपको सुविधा होगी।

अन्य किसी मुद्रा की सुविधा चाहें, या और कोई प्रश्न या सुझाव हो तो नि:संकोच हमसे सम्पर्क करें

छोटी, प्यारी, मगर मुक्त है क्या? काव्य शिल्प और मुक्त उड़ान के कुछ आधार

किसी कमाल हायकू का सा असर है, केदारनाथ अग्रवाल की इस छोटी सी रचना में। पर यह हायकू नहीं है। शायद सरल साधारण मुक्त कविता है?

अच्छा विधा की बात बाद में करेंगे, पहले रचना का रसास्वादन तो करें!

आज नदी बिलकुल उदास थी।
सोयी थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर –
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसे नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया।

~ केदारनाथ अग्रवाल

हुआ न असर? इतने से शब्द में एक स्पष्ट चित्र खिंच गया, और चित्र एक विस्तृत एहसास में बदल गया। एक पल, अनन्त की गहराई लिए ― ठीक वैसे जैसे एक माहिर कवि की हायकू अपनी डिबिया में छिपाए रखती है। पर यह हायकू नहीं है!

“वाणी, यह क्या हो गया है आपको? यह तो सभी को दिख रहा है कि यह हायकू नहीं है।”

ओह! तो क्या यह बस एक मुक्त कविता है? कवि ने अपनी बात कह दी और बस किसी चमत्कार से हम पर असर हो गया?

“जी ‘गागर में सागर’ कहते हैं हमारे यहाँ। बाकि हमें क्या करना कि यह ‘क्या’ कविता है! यह कवियों का होता है कुछ — ‘अन्दाज़े-बयां’ वगैरह…”

कुछ तो रहस्य है। कैसे हो जाता है असर? क्या है यह चमत्कार? मेरा मन कह रहा है, कुछ तो है जिसके कारण यह पंक्तियाँ मुझे खींच लेती हैं। बस “अन्दाज़े-बयां” नहीं है।

आह! गीत गतिरूप ने कुछ नक़ाब हटाए! इन पंक्तियों में एक अदृश्य लय छिपा है। इसी के स्पन्दन से यह पंक्तियाँ अप्रत्यक्ष मेरे मन में प्रतिध्वनित हो रही हैं।

आज नदी - पंक्तियों को अलग तरह से तोड़ें - उसका गतिरूप

सोलह मात्राओं का लय – काव्य, संगीत, नृत्य में सबसे ज्यादा प्रयोग होता है। तबला पर इसे “तीनताल” कहते हैं। हमारा मन बड़ी सहजता से इसे ग्रहण कर लेता है। कभी कभी तो हमें पता भी नहीं चलता कि वह हममें गूंज रहा है, जैसे कि इस रचना में।

यहाँ पहली चार पंक्तियों में कोई तुक भी नहीं, और बीच में तो लय काफी टूट भी रहा है — इसी से रचना छन्द बद्ध नियमों से मुक्त लगती है। लगता है कवि ने बस अपनी बात कह दी — बात सुन्दर है, दृश्य सुन्दर है, तो हो गया असर।

पर कवि ने बस ऐसे ही नहीं कह दिया। इस मुक्त उड़ान का भी आधार है। लय पाठक के मन में अनुभूति को प्रतिध्वनित करने की, पंक्तियों को प्रवाह देने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जो पंक्तियाँ लय में हैं, उनका तो हमारे अवचेतन पर असर हो ही रहा है — बीच में जहाँ लय टूट रहा है, सोलह मात्रा के छंद में से, आठ मात्रा, अर्थात आधी पंक्ति गायब हैं, उसका भी खास असर है। पहली बात 16 से ठीक आधा, 8 मात्रा गायब है, 3 नहीं, 6 या 7 नहीं। पढ़ने के दौरान स्वाभाविक रूप से वहाँ कुछ खाली खाली सा रह जाता है। इस आधी अदृश्य पंक्ति में कवि मौन को भी स्पष्ट आसन दे रहा है और हमें पता नहीं चलता मगर उस मौन से निहित एहसास और गहरा जाता है।

यह छंद टूटी पंक्तियों में कवि ने अगली पंक्ति कहाँ शूरु की है, उसके भी अर्थ हैं। पहली पंक्ति “उसके दर्पण पर” के बाद पाठक स्वाभाविक रूप से दो क्षण रुकता है, नदी के दर्पण को आत्मसात करता है, फिर “बादल का वस्त्र पड़ा था” से अगली बात, अगला दृश्य, अगली अनुभूति प्रस्तुत की जाती है। अगर हम सजग होकर पंक्तियों को ग्रहण करेंगे, तो मन के अन्दर यह क्रिया छोटे से चलचित्र के जैसे घटती नज़र आएगी।

काव्य में लय, प्रवाह की महत्वपूर्ण भूमिका है, मगर सिर्फ़ वह ही सबकुछ नहीं है। सिर्फ़ लय पर ध्यान दें तो कवि शब्दों को इस प्रकार सजा सकता था

उसके दर्पण
पर बादल का
वस्त्र पड़ा था
आज नदी - पंक्तियों को अलग तरह से तोड़ें - उसका गतिरूप

इस प्रकार से बात ठिठक कर पाठक तक पँहुचती है, अनुभूति और दृश्य गायब हो जाते हैं। हर पंक्ति का अपने में कोई अर्थ नहीं रह जाता है।

जैसे शिल्पकार पत्थर तराशता है, कवि व गीतकार समय तो तराश कर उसमें शब्दों को जड़ देता है। उद्देश्य – अनुभूति का सम्प्रेषण जो पाठक के मन में सुगन्ध की तरह फैल जाए। लोग कहते हैं कविता तो भावना की मुक्त धारा है, उसे बस बहने दो। हाँ, ज़रूर, पहले ड्राफ़्ट में बस लिख डालो जो भी शब्द बह रहे हैं। पर फिर वह अभिव्यक्ति पाठक के हृदय में भी सहज स्पन्दित होती है कि नहीं यह शिल्प की बात है। विधा चाहे जो भी हो, रचना चाहे जितनी भी लम्बी या छोटी हो। पहली बार में जो लिख दिया वही कविता नहीं बन जाती। कवि अपने पहले ड्राफ़्ट को शिल्प के नज़रिए से बार बार तराशता है, जबतक कि हर शब्द को स्पष्ट आसन न मिल जाए, जबतक कि सभी अतिरिक्त शब्दों को झाड़ कर हटा न दिया जाए। तब रचना उभर कर बाहर आती है।

***

लेख में चित्र और मात्रा गणना गीत गतिरूप के द्वारा किया गया है। गीत गतिरूप कवि को अपनी कविताओं का शिल्प तराशने में मदद करता है।

मुक्त कविता की उड़ान पर आप भी अपना अनुभव साझा करें, कवि के जैसे भी, और पाठक के जैसे भी। कोई कविता आपपर क्यों असर करती है उसपर अपने विचार नीचे कमेन्ट में साझा करें।