नई सुविधा – ग़ज़लकारों के लिए

दोस्तो,

अब गीत गतिरूप ग़ज़ल का रदीफ़ और काफ़िया का अनुमान कर बता सकता है| आप अगर ग़ज़ल विधा सीख रहे हैं या सिखा रहे हैं तो यह सुविधा आपके ख़ास काम आ सकती है| ग़ज़ल के शिल्प के विषय में आप यहाँ पढ़ सकते हैं – Basic Structure of Hindi Poetry Part 4: Correspondence with Urdu Poetry.

यह सुविधा इस लेख के आधार पर ही बनाई गयी है| इस सुविधा का प्रयोग ऐसे करते हैं –

रचना को रचना के बॉक्स में डालें या टाइप करें – उदाहरण स्वरुप हम ग़ालिब का एक ग़ज़ल लेते हैं –

और हमेशा कि तरह “प्रतिरूप देखें” बटन दबाइए

हमेशा की तरह गीत गतिरूप का नतीजा दिखेगा –

आप अगर रचना का ग़ज़ल के जैसे विश्लेषण करना चाहते हैं तो “ग़ज़ल” चेकबॉक्स को चेक करें –

गीत गतिरूप रदीफ़ और काफ़िया का अनुमान लगाकर दिखाएगा – रदीफ़ नीले में (“नहीं आती”) और काफ़िया हलके हरे में (“बर”, “ज़र”, “भर” इत्यादि) –

किसी भी रचना की तरह आप यहाँ भी अक्षरों का मात्रा निर्धारण उच्चारण के अनुसार एडजस्ट कर सकते है| ऐसा करने पर ग़ज़ल का यह प्रतिरूप बनता है –

मात्राओं को उच्चारण के अनुसार एडजस्ट करने की सुविधा ख़ास उर्दू और उर्दू प्रेरित रचनाओं के लिए है| इसे इस विडियो में विस्तार से समझाया गया है|

रदीफ़ और काफ़िया का अनुमान गीत गतिरूप मतला (ग़ज़ल की पहले शेर, पहली दो पंक्ति) से लगाता है| इसके अनुसार वह बाकी सभी शेर के दुसरे मिसरे (पंक्ति) में रदीफ़ और काफ़िया खोजता है| इसीलिए यह अनिवार्य है कि रचना के बॉक्स में पहली दो पंक्तियाँ मतले की ही हो और शेष पंक्तियाँ भी ग़ज़ल के अनुसार हो – और कोई अक्षर या कैरक्टर न हो, पूर्णविराम भी नहीं, और हर शेर एक एक पंक्ति खाली छोड़ कर हो|

एक उदाहरण और लेते हैं, दुष्यन्त कुमार की ग़ज़ल “हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए”| मतला के आधार पर रदीफ़ “चाहिए” है और काफ़िया “पिघलनी”, “निकलनी” है| मगर ग़ज़ल के अन्य शेर में काफ़िया पूरी तरह से नहीं मिल रहा| जितना मिल रहा है उसे ही हलके हरे रंग में दिखाया गया है|